Hadiyat-Un-Nisa (हदयतुन्निसा)
Khaandan ka sudhar | Aurton ki Akhlaqi Tarbiyat aur Ahkam wa Masail
इन्सानी इतिहास का अध्ययन यह बताता है कि औरत हमेशा जुल्म का शिकार रही है। कहीं तो उसके साथ जानवरों से भी बुरा सुलूक किया जाता रहा और कहीं उसे मरदों से भी ऊंचा बैठा दिया जाता, मगर इस्लाम ने औरत के मक़ाम व मर्तबा और हुकूल व फ़राइज़ के हवाले से बेहद सुन्तुलन राय कायम की है। यही वजह है कि जब तक इस्लाम सरबुलन्द रहा और मुस्लिम समाज में इस्लामी तालीमात के मुताबिक़ अमल होता रहा तब तक औरत की तरफ़ से कभी हक़तल्फ़ी की शिकायत नहीं की गई। कभी ऐसा नहीं हुआ कि औरत ने अपने हुक़ूक़ के लिए संस्था बनाकर वावेला किया हो या मर्दों के खिलाफ़ प्रदर्शन किया हो। इसलिए कि औरत के हुक़ूक़ व फ़रीज़े के हवाले से इस्लाम की दी गई तालीमात पर अमल करने से कभी उन चीज़ों की ज़रूरत महसूस नहीं हो सकती।
पूरबी दुनिया में औरत हमेशा जुल्म व सितम का निशाना रही थी और पिछले दो सौ साल से इसका नतीजा यह सामने आया कि औरत को हर मैदान में मर्दों के साथ अब बराबरी के तौर पर शरीक मान लिया गया है। इसे मर्द के मुक़ाबले में एक औरत मानने के बजाय मर्द ही समझा जा रहा है। इसे घर में रहकर बच्चे पालने और घर संभालने के बजाय अपनी फ़ितरत के मनाफ़ी काम भी सौंपे जा रहे हैं। मानो औरत को अब एक दूसरी हद पर पहुंचा दिया गया है और उसके नतीजे में पैदा हाने वाले नुक्सानों से आंखें बन्द की जा रही हैं, बल्कि उलटी यह दलील दी जा रही हैं कि औरत के लिए घर की चार दीवारी तक महदूद रहने से उसके हक़ को मारा जाता है और मर्दों से साथ साथ न चलने से समाज की तरक़्क़ी में रुकावट पैदा होती है। फिर यह भी कि इस्लाम के खिलाफ़ ये एतेराज़ात उठाए जा रहे हैं कि इस्लाम ने औरतों को मामूली दर्जा दिया है। उन्हें घर की चार दीवारी में क़ैद करके उनकी आज़ादी छीन ली है। उन्हें मर्दों के मातहत बनाकर उनका हक़ मारा गया है। उन्हें मर्दों के मुक़ाबले में आधी मख़्लूक़ कहा है। उन्हें विरासत (तर्का), दैयत और गवाही हर जगह मर्दों के मुक़ाबले में आधा दर्जा देकर उन पर अत्याचार किया है। इत्यादि ।
पूरबी सभ्यता से मुतास्सिर हमारे कुछ नए लोग पूरबी विचारों की कमी समझने के बजाय उलटा उनकी हां में हां मिला रहे हैं और अपनी ग़लती मानने का अंदाज़ अपनाकर इस्लाम की ग़लत ताबीर पेश कर रहे हैं।
Reviews
There are no reviews yet