Islam ka Nizam Akhlaq wa Adab Hindi – Al Marfa Online Islamic Bookshop https://almarfa.in An Authentic Islamic Bookshop Fri, 16 Dec 2022 02:52:22 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.6.1 https://almarfa.in/wp-content/uploads/2021/04/cropped-site-icon-32x32.png Islam ka Nizam Akhlaq wa Adab Hindi – Al Marfa Online Islamic Bookshop https://almarfa.in 32 32 181643429 Islam ka Nizam Akhlaq wa Adab Hindi इस्लामी शिष्टाचार https://almarfa.in/shop/fiqh/hindi-fiqh/islam-ka-nizam-akhlaq-wa-adab-hindi-%e0%a4%87%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a5%80-%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%be%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b0/ https://almarfa.in/shop/fiqh/hindi-fiqh/islam-ka-nizam-akhlaq-wa-adab-hindi-%e0%a4%87%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a5%80-%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%be%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b0/#respond Sun, 07 Nov 2021 09:27:46 +0000 https://almarfa.in/?post_type=product&p=10298 Islam ka Nizam Akhlaq wa Adab Hindi इस्लामी शिष्टाचार

किसी भी समाज की तरक्की और खुशहाली का इन्हिसार अच्छे अकीदे और अच्छे अख़्लाक व किरदार पर होता है। जब तक कोई समाज अच्छे अख़्लाक और अच्छे किरदार का मुज़ाहिरा न करे। ऐसे समाज पर अल्लाह तआला के फज्ल व एहसान कम ही हुआ करते हैं। चुनांचे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु ने इरशाद फरमायाः

“बिला शुबहा अल्लाह तआला नर्मी करने वाला है और नर्मी को पसंद करता है। नर्मी पर वह कुछ अता फरमाता है जो कि सख़्ती, और उसके अलावा किसी दूसरी चीज़ पर अता नहीं फरमाता।”

आपकी नुबुव्वत का अहम तरीन मकसद यह है कि लोगों को अच्छा अख़्लाक सिखाएं। और अच्छे अख़्लाक की बुलंदियों तक पहुंचा दें।

रसूलुल्लाह की हदीस है:

“मैं हुस्ने अख़्लाक को पूरा करने के लिए भेजा गया हूं।”

लोग यहां तक कि कुफ्फार भी शरीक हैं। अगर मुखातब मुसलमान है तो उसे सलाम किया जाए और हंसते चेहरे के साथ बात की जाए, और अगर काफिर है तब भी उसके साथ अच्छे अंदाज़ में गुफ़्तुगू की जाए, क्योंकि मुसलमान बदजुबान, गाली गलींच देने वाला और झगड़ालू नहीं होता। मुस्लिम और तिर्मिज़ी ने रिवायत की है कि रसूलुल्लाहने फरमायाः छोटी से छोटी नेकी को भी हकीर न जानो, चाहे नेकी यही हो कि तुम अपने भाई के साथ मुस्कुराते चेहरे के साथ मिलो।”
(तैसीरुर्रहमान, पेजः 50, 51 )

अच्छा अख़्लाक सब से वज़नी नेकी है। जब कि बदकलामी, सख़्त लहजे में गुफ़्तुगू करना अल्लाह की नाराज़गी को अपने लिए वाजिब करना है। जो कि किसी तरह भी मोमिन के लायक नहीं है।

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